malaria ke lakshan

malaria ke lakshan 


malaria ke lakshan 


परिचय :
          मलेरिया बुखार संक्रामक रोग नहीं है। यह रोग खून में एक प्रकार के जीवाणु के प्रवेश कर जाने के कारण से पैदा होता है, यह ज्वर कभी छूट जाता है, कभी नहीं छूटता। इस रोग के कारण प्लीहा और यकृत अक्सर बढ़ जाते हैं और खून की कमी हो जाती है। यही इस रोग का परिणाम है। खासकर ठंड के मौसम यह रोग अधिकतर होता है।

कारण :

          यह मादा एनाफिलिज मच्छर के काटने से फैलता है। इस मच्छर को प्लाजमोडियम वाइवेक्स या प्लाजमोडियम फएलसिपेरम कहते हैं। ये मच्छर गन्दी जगहों पर पैदा होती है। यह रोग ठंड वाले स्थान पर रहना, गीली जगह में रहना, ऐसी जगह में रहना, जहां पानी की निकासी अच्छी तरह न होती हो, मैलेरिया-भरी जगहों में मसहरी (मच्छर दानी) लगाये बिना ही सोना, बरसात या ठंड के मौसम में खुली जगह पर सोने से होता है।
          मैलेरिया के रोगी के रक्त की जांच करने पर एक तरह का जीवाणु (हइमाटेजाआ ऑफ लवेरोन) पाया जाता है। यही इस रोग का मुख्य कारण होता है।
          बरसात और ठंड के मौसम में मलेरिया ज्यादा होता है और साधारणत: गरीब लोगों को ही यह बीमारी होती है।



मलेरिया रोग की तीन अवस्थाएं होती हैं :

1. शीतावस्था :- इस अवस्था में रोगी को अधिक कंपकंपी होती है। कई कम्बल-रजाई ओढ़ने के बाद भी कंपकंपी नहीं मिटती है। यह स्थिति 15 से 16 घंटे तक चल सकती है।
2. ज्वरावस्था :- कंपकंपी होने के बाद बुखार तेज हो जाता है जो 104 डिग्री से ऊपर भी चला जाता है। रोगी के शरीर में तेज जलन होती है, सिरदर्द होता है, उल्टी करने की इच्छा होती है। यह स्थिति 2 से 6 घंटे तक रहती है।
3. स्वेदकाल :- अत्यधिक पसीना आकर बुखार उतर जाता है। पर शीतावस्था, ज्वरावस्था, स्वेदावस्था का यह क्रम कुछ घंटे दिन के अंतर पर दुबारा लौट आ सकता है। किसी को दूसरे दिन, किसी को तीसरे दिन तो किसी को और भी ज्यादा अंतराल से रोग दुबारा लौटकर आ जाता है।

मलेरिया ज्वर, खासकर पांच प्रकार का होता है :

1. सविराम ज्वर।
2. स्वल्प-विराम ज्वर।
3. छिपा हुआ या छद्मवेशी मैलेरिया।
4. मैलेरिया के कारण धातु-विकार।
5. उत्कट मैलेरिया (सांघातिक)।

मैलेरिया से उत्पन्न सविराम ज्वर (इनटेरमिटटेनड मलेरिया फीवर) :

          जब यह रोग किसी को होता है तो उसका बुखार ठीक होकर बार-बार आ जाता है, प्लीहा तथा यकृत धीरे-धीरे बढ़ने लगती हैं, ठंड से बुखार लगती है, बुखा रहल्का होता है।

दैनिक बुखार :
          जो बुखार प्रतिदिन 24 घण्टे के अंदर सिर्फ एक बार बुखार आकर ठीक हो जाता है उसे दैनिक बुखार कहते हैं।

द्वाहिक या तृतीमक ज्वर :

          एक दिन ठीक होने के बाद जब तीसरे दिन बुखार आ जाता है तो उसे द्वाहिक या तृतीमक (रेएटइन) ज्वर कहते हैं।

चतुर्थक :

          जो दो दिन के बाद बुखार आता है उसे त्रयहिक या चतुर्थक (क्वारटन) बुखार कहते हैं।

द्वौकालीन ज्वर :

          दिन-रात अर्थात् 24 घण्टों में दो बार आने वाले बुखार को द्वौकालीन ज्वर कहते हैं। यह दो बार आने वाला बुखार बहुत ही कड़ा एवं गम्भीर होता है, इसका इलाज बहुत सोच-विचार से करना पड़ता है। पित्त के कारण होने वाले ज्वर एक दिन ज्यादा और एक दिन कम होता है। कोई-कोई ज्वर प्रतिदिन एक ही समय पर आता है और कोई-कोई बुखार में ऐसा भी होता है कि आज एक समय आया तो कल उससे दो-एक घंटा पहले ही आ जाता है, ऐसे बुखार से बहुत अधिक डर लगता है लेकिन यह बुखार दो-एक घण्टा पीछे हटकर आता है तो यह लक्षण अच्छा समझा जाता है। सुबह के समय में बुखार बढ़ने लगता है। अधिकतर क्विनाइनके उपयोग से प्लीहा और यकृत बढ़ जाती है और जिसके कारण पेट में सूजन आ जाती है।

          सविराम ज्वर को विषम ज्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह बुखार एक बार छूटने के बाद थोड़े या अधिक समय के बाद फिर से आ जाता है। इसलिए इस बुखार को विषम ज्वर  के नाम से जाना जाता है।

कारण :

          हैजा, प्लेग, चेचक वगैरह रोगों के होने का कारण जीवाणु-बीज हैं, उसी तरह मैलेरिया रोग का कारण भी वैसे ही एक प्रकार के जीवाणु-बीज होते हैं। मलेरिया ज्वर उत्पन्न करने वाले कीटाणु बहुत ही सूक्ष्म होता है। ये कीटाणु सूक्ष्मदर्शी की सहायता के बिना दिखाई नहीं देते हैं। यह मच्छर मनुष्य के शरीर में घुसने के कुछ देर बाद ही अपना वंश बढ़ाकर, बहुत जल्दी समूचे शरीर के खून को खराब कर डालता है। इस प्रकार के लक्षणों की अवस्था को ही मलेरिया कहते हैं।

          चूहे के द्वारा जिस प्रकार से प्लेग रोग पैदा होता है ठीक उसी प्रकार से मच्छर के द्वारा मलेरिया रोग फैलता है। यह मच्छर पानी वाले जगह में होते हैं।

मलेरिया की तीन अवस्थाएं :

          शीतावस्था, उष्णवस्था तथा पसीने की अवस्था।

शीतावस्था :

          शीतावस्था में रोगी को सबसे पहले ठंड लगती है इसके बाद कंपकंपी होती है, कभी-कभी ठंड और कंपकंपी लगकर यह बुखार होता है, ऐसे रोगी को यदि तीन-चार रजाइयां भी ओढ़ा देते हैं तब भी रोगी का ठंड दूर नहीं होता है। रोगी के शरीर में दर्द, माथे पर टपक सा दर्द और कभी-कभी खुश्क खांसी भी होती है।

उष्णावस्था :

          इस अवस्था में सिर में दर्द होता है, चेहरा लाल हो जाता है, शरीर की त्वचा सूखी रहती है तथा सांस लेने और छोड़ने में परेशानी होती है। शरीर का तापमान लगभग 100 से 107 डिग्री तक बढ़ जाता है। शरीर का ताप बढ़ने पर ठंड कम लगती है।

पसीनेवाली अवस्था :

          इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर से जब पसीना निकलने लगता है तो उस अवस्था को पसीने वाली अवस्था कहते हैं।

द्वोकालीन ज्वर, सुबह के समय का ज्वर या अग्रगामी ज्वर :

          जब सविराम ज्वर एक ज्वर में बदल जाए तो समझना चाहिए कि रोग खतरनांक हो रहा है जो रोगी के लिए गंभिर बातें हैं।



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